Thursday, October 28, 2010

पुलिस ने गवाह को थाने में बंद कर पीटा

पश्चिमी दिल्ली, जागरण संवाददाता : पुलिस का विद्रूप चेहरा एक बार फिर सामने आया है। बिंदापुर इलाके में एक युवक को पुलिस वालों ने अपने खिलाफ गवाही देने पर जमकर पीटा। उसके साथ रहे दोस्त को भी नहीं बक्शा गया। इतना ही नहीं बात न मानने पर झूठे मामलों में फंसाने की धमकी भी दी।

करीब एक महीने पहले बिंदापुर इलाके में पुलिस वालों ने डंडा मारकर फल विक्रेता लियाकत अली का हाथ तोड़ दिया था। आरोप है कि पुलिस वाले लियाकत से पैसे मांग रहे थे। इस मामले में उत्तम नगर निवासी शंकर गवाह है। शंकर का आरोप है कि शनिवार रात को वह किसी काम से बिंदापुर गया था। तभी उसके दोस्त इज्जत ने बताया कि रेहड़ी चालक इरफान को पुलिस ने पकड़ लिया है। इस पर दोनों मामले की जानकारी के लिए थाने पहुंचे। जैसे ही शंकर ने अपना परिचय दिया, हेड कांस्टेबल प्रहलाद सिंह भड़क उठा और शंकर से गाड़ी की चाभी और मोबाइल छीन लिया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने दोनों को थाने में बंद कर जमकर पीटा। इतना ही नहीं शंकर को धमकाते हुए गवाही न देने की बात कही। बात न मानने पर झूठे मामलों में फंसाने की धमकी भी दी। रविवार को पुलिस अधिकारियों को जब मामले की जानकारी मिली तो दोनों को छोड़ने का आदेश दिया गया। पुलिस अधिकारियों की माने तो रेहड़ी-पटरी लगाने वाले हमेशा मनमानी करते है। ऐसे में पुलिस जब सख्ती बरतती है, तो वह पुलिस वालों पर ही आरोप लगाना शुरू कर देते हैं।

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आरएस कृष्णैया का कहना है कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है। मामले की छानबीन कराई जाएगी।

Sabhar Dainik Jagran

Wednesday, October 27, 2010

यही है पुलिस का बिद्रूप, अमानवीय, घिनौना चेहरा


पुलिस की गिरफ्त में यशवंत सिंह के परिजन

सेवा में, मानवाधिकार आयोग, दिल्ली / लखनऊ। श्रीमान, मैं यशवंत सिंह पुत्र श्री लालजी सिंह निवासी ग्राम अलीपुर बनगांवा थाना नंदगंज, जनपद गाजीपुर, उत्तर प्रदेश (हाल पता- ए-1107, जीडी कालोनी, मयूर विहार फेज-3, दिल्ली-96) हूँ. मैं वर्तमान में दिल्ली स्थित एक वेब मीडिया कंपनी भड़ास4मीडिया में कार्यरत हूं. इस कंपनी के पोर्टल का वेब पता www.bhadas4media.com है. मैं इस पोर्टल में सीईओ & एडिटर के पद पर हूं. इससे पहले मैं दैनिक जागरण, अमर उजाला एवं अन्य अखबारों में कार्यरत रहा हूँ.

पिछले दिनों दिनांक 12-10-2010 को समय लगभग 10 बजे रात को मुझे गाजीपुर जिले के नंदगंज थाने के अपने गाँव अलीपुर बनगांवा से मेरे मोबाइल नंबर 9999330099 पर मेरे परिवार के कई लोगों के फोन आए. फोन पर बताया गया कि स्थानीय थाना नंदगंज की पुलिस ने मेरी मां श्रीमती यमुना सिंह, मेरी चाची श्रीमती रीता सिंह पत्नी श्री रामजी सिंह और मेरे चचेरे भाई की पत्नी श्रीमती सीमा सिंह पत्नी श्री रविकांत सिंह को घर से जबरन उठा लिया. मुझे बताई गयी सूचना के अनुसार यह बात लगभग साढ़े आठ से साढ़े नौ बजे रात की होगी. फ़ोन करने वाले ने यह भी बताया कि पूछने पर पुलिस वालों ने कहा कि ऐसा गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक श्री रवि कुमार लोकू तथा पुलिस के अन्य उच्चाधिकारियों यथा बृजलाल आदि के निर्देश पर हो रहा है और गाँव में ही दिनांक 12-10-2010 को हुयी श्री शमशेर सिंह की हत्या में नामजद अभियुक्तों श्री राजेश दुबे उर्फ टुन्नू तथा रविकांत सिंह की गिरफ्तारी नहीं हो सकने के कारण इन्हीं महिलाओं को इस मामले में दवाब बनाने के लिए थाने ले जाना पड़ रहा है. फ़ोन करने वाले ने यह भी बताया कि ये लोग उनके साथ भी काफी बदतमीजी से पेश आये थे. उसके बाद नंदगंज की पुलिस ने रात भर इन तीनों महिलाओं को थाने में बंधक बनाए रखा. मैंने इस सम्बन्ध में तुरंत लखनऊ व गाजीपुर के मीडिया के अपने वरिष्ठ साथियों से संपर्क किया और उनसे अनुरोध किया कि वे थाने जा कर या किसी को भेजकर महिलाओं को थाने में बंधक बनाकर रखे जाने के प्रकरण का सुबूत के लिए वीडियो बना लें और फोटो भी खींच लें या खिंचवा लें ताकि इस मामले में कल के लिए सबूत रहे. उस रात तो नहीं, लेकिन अगले दिन दोपहर से पहले कुछ रिपोर्टरों ने नंदगंज थाने में जाकर बंधक बनाई गई महिलाओं से बातचीत करते हुए वीडयो टेप बना लिया और तस्वीरें भी ले लीं. उनमें से कुछ तस्वीरों व वीडियो को इस शिकायती पत्र के साथ संलग्न कर रहा हूं.

इसके बाद मैंने यथासंभव हर जगह संपर्क किया जिसमे इन लोगों ने निम्न अधिकारियों से वार्ता की-
1. गाजीपुर के पुलिस अधीक्षक रवि कुमार लोकू
2. वाराणसी परिक्षेत्र के आईजी आरबी सिंह या बीआर सिंह
3. नंदगंज थाने के थानेदार राय

लखनऊ के कुछ मित्रों ने लखनऊ में पदस्थ पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों, जो पूरे प्रदेश में कानून व्यवस्था व पुलिस महकमे का काम देखते हैं, से बातचीत की. सभी जगहों से एक ही जवाब मिला कि हत्या का मामला है, हत्यारोपी का सरेंडर कराओ, महिलाएं छोड़ दी जाएंगी वरना थाने में ही बंधक बनाकर रखी जाएंगी. गाजीपुर व वाराणसी परिक्षेत्र के पुलिस अधिकारियों ने यह भी कहा कि यह प्रकरण ऊपर से देखा जा रहा है, शासन का बहुत दवाब है और स्वयं पुलिस महानिदेशक कर्मवीर सिंह इस मामले को देख रहे हैं इसीलिए उनके स्तर से कोई भी मदद संभव नहीं है.

फिर मैंने अपने पुराने मित्र श्री शलभ मणि तिवारी, ब्यूरो प्रमुख, आईबीएन ७, लखनऊ से संपर्क किया और पूरा माजरा बताया. उन्होंने स्वयं श्री बृज लाल, जो इस समय अपर पुलिस महानिदेशक क़ानून और व्यवस्था, उत्तर प्रदेश हैं, से दिनांक 12-1-2010 को संपर्क किया किन्तु उन्होंने भी आपराधिक और गंभीर घटना बताने हुए और यह कहते हुए कि जब तक मुख्य मुलजिम गिरफ्तार नहीं हो जायेंगे, तब तक मदद संभव नहीं है, बात को वहीँ रहने दिया. अंत में दिनांक 13-10-2010 को दोपहर बाद करीब एक या 2 बजे मेरी माँ और बाकी दोनों महिलाओं को तभी छोड़ा गया जब मेरे चचेरे भाई श्री रविकांत सिंह ने अचानक थाने पहुंचकर सरेंडर कर दिया. यहां मैं साफ कर देना चाहता हूं कि मेरा व मेरे चाचा का परिवार पिछले कई दशक से अलग रहता है और सबके चूल्हा चौके व दरो-दीवार अलग-अलग हैं.

महिलाओं से संबंधित कानून साफ़-साफ़ यह बात कहते हैं कि महिलाओं को किसी भी कीमत में थाने पर अकारण नहीं लाया जा सकता है. उनकी गिरफ्तारी के समय और थाने में रहने के दौरान महिला पुलिसकर्मियों का रहना अनिवार्य है. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के अनुसार उन्हें पूछताछ तक के लिए थाने नहीं ला सकते, बल्कि उनके घर पुलिस को जाना पड़ता है. इसी संहिता की धारा 50 के अनुसार यहाँ तक उन स्थानों के सर्च के लिए भी जहां महिलायें हो, महिला पुलिस का रहना अनिवार्य है. इन सबके बावजूद इन तीन महिलाओं को थाने में शाम से लेकर अगले दिन दोपहर तक बिठाये रखना न केवल शर्मनाक है बल्कि साफ़ तौर पर क़ानून का खुला उल्लंघन है. इसके साथ यह मामला माननीय उच्चतम न्यायालय की भी सीधी अवमानना है क्योंकि डीके बासु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के प्रकरण में माननीय न्यायालय ने जितने तमाम गिरफ्तारी सम्बन्धी निर्देश दिए हैं, उन सबों का साफ़ उल्लंघन किया गया है. वह भी तब जब कि माननीय सर्वोच्चा न्यायालय के आदेश पर डीके बासु का यह निर्णय हर थाने पर लगा होता है, नंदगंज में भी होगा. मैं इस सम्बन्ध में हर तरह के मौखिक और अभिलेखीय साक्ष्य भी प्रस्तुत कर सकता हूँ जिसके अनुसार नेरी मां व अन्य महिलाओं को थाने में बिठाए जाने के बाद थाने में बैठी महिलाओं की तस्वीरें व वीडियो मेरे पास सप्रमाण हैं. यह सब बंधक बनाए जाने के घटनाक्रम के सुबूत हैं. कुछ तस्वीरों व वीडियो को प्रमाण के रूप में यहां सलग्न कर रहा हूं.

साथ ही अगले दिन पुनः स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) के लोग बिना किसी नोटिस, चेतावनी और आग्रह के सादी वर्दी में सीधे मेरे गांव के पैतृक घर में घुसकर छोटे भाई के बेडरूम तक में चले गए और वहां से छोटे भाई की पत्नी से छीनाझपटी कर मोबाइल व अन्य सामान छीनने की कोशिश की. छोटे भाई व अन्य कई निर्दोष युवकों को थाने में देर रात तक रखा गया. इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के ही एक आईपीएस अधिकारी श्री अमिताभ ठाकुर से जब मैंने वार्ता की और उन्होंने उच्चाधिकारियों से वार्ता की तब जाकर रात में मेरे भाई भगवंत सिंह और अन्य लोगों को छोड़ा गया. इन सभी कारणों से मेरे परिवार के सभी सदस्यों को पुलिस से जानमाल का खतरा उत्पन्न हो गया है और जिस तरह की हरकत स्थानीय अधिकारी व पुलिस के लोग कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि उनका लोकतंत्र व मानवीय मूल्यों में कोई भरोसा नहीं है.

मेरी जानकारी के अनुसार इस पूरे मामले में निम्न पुलिस वाले दोषी है और उनकी स्पष्ट संलिप्तता है- डीजीपी करमवीर, एडीजी बृजलाल, आईजी आरबी सिंह या आरपी सिंह, एसपी रवि कुमार लोकू, थानेदार राय. अतः इन समस्त तथ्यों के आधार पर आपसे अनुरोध है कि कृपया इस प्रकरण में समस्त दोषी व्यक्तियों के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर अग्रिम कार्यवाही करने का कष्ट करें. ऐसा नहीं होने की दशा में मैं न्याय हेतु अन्य संभव दरवाज़े खटखटाउंगा.

यहां यह भी बता दूं कि मैंने यूपी पुलिस के सभी बड़े अफसरों के यहां महिलाओं को बंधक बनाए जाने की घटना से संबंधित शिकायत व प्रमाण मेल के जरिए भेज दिए थे. उस पर बताया गया कि जांच के आदेश दिए गए हैं. जांच के लिए गाजीपुर में ही पदस्थ कुछ अधिकारी गांव गए व महिलाओं के बयान लिए. लेकिन अभी तक कोई नतीजा सामने नहीं आया है जिससे मैं मान सकूं कि दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है. इसी कारण मजबूर होकर मुझे मानवाधिकार आयोग की शरण में जाना पड़ रहा है. महिलाओं को बंधक बनाए जाने के तीन वीडियो यूट्यूब पर अपलोड कर दिए गए हैं जिसका यूआरएल / लिंक इस प्रकार है... इन लिंक पर क्लिक करने पर या इंटरनेट पर डालकर क्लिक करने पर वीडियो देखा जा सकता है....

http://www.youtube.com/watch?v=rQMYVV3Iq3M&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=ky_XFR9uLdE&feature=player_embedded
http://www.youtube.com/watch?v=7yXsEgpEXQw&feature=player_embedded

महिलाओं को बंधक बनाए जाने की एक तस्वीर इस मेल के साथ अटैच हैं, जिसे आप डाउनलोड कर सकते हैं. इसी तस्वीर का लिंक / यूआरएल दे रहे हैं, जिस पर क्लिक करने से वो तस्वीर सामने आ जाएगी...
http://www.bhadas4media.com/images/img/maathaana.jpg

इस प्रकरण से संबंधित सुबूतों के आधार पर कई अखबारों और न्यूज चैनलों ने यूपी पुलिस की हरकत के खिलाफ खबरें प्रकाशित प्रसारित कीं. इनमें से एक अखबार में प्रकाशित खबर की कटिंग को अटैच कर रहे हैं और एक न्यूज चैनल पर दिखाई गई खबर का लिंक यहां दे रहे हैं...
http://www.youtube.com/watch?v=CvmzdlDlLb8&feature=player_embedded

भवदीय,
यशवंत सिंह
पुत्र श्री लालजी सिंह,
निवासी
अलीपुर बनगांवा, थाना नंदगंज
जिला गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
फ़ोन नंबर-09999330099

Monday, October 25, 2010

पुलिस का खौफनाक चेहरा उजागर हुआ

पुलिस की अधूरी जानकारी के विरूद्ध पत्रकार राजीव कुमार ने सीआईसी की शरण ली

रविन्द्र कुमार द्विवेदी


दिल्ली पुलिस आपके लिए आपके साथ का नारा देने वाली दिल्ली पुलिस को शायद इसका मतलब शायद पता नही है।तभी तो आए दिन दिल्ली पुलिस की कारस्तानी अखबारों में छपती रहती है। दिल्ली पुलिस आम जनता की मदद तो दूर समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को भी अपने सामने कुछ नही समझती है। ऐसे ही एक घटना के तहत एक पत्रकार ने दिल्ली पुलिस की वास्तविकता देखी।

तात्काजलिक हिन्दी पत्रिका भारतीय पक्ष के पत्रकार राजीव कुमार पिछले कई साल से उत्तम नगर के संपत्ति संख्या ए-20 सुभाष पार्क में किराये पर अपने परिवार के साथ रह रहे थे। 22/10/2009 को राजीव के मकान मालिक सुरेश ने राजीव से जानबूझकर नशे में धुत्त होकर फसाद किया व उन्हें घर से निकालकर उनकी पत्नी शिल्पी और एक साल के पुत्र आकाश को बंधक बना लिया। राजीव ने अंत में 100 नंबर पर फोन किया। पीसीआर की गाड़ी आई, राजीव की मदद करने को कौन कहे उल्टे उन्हें डांटने-फटकारने लगी। राजीव ने मिन्नतें की कि मेरे बच्चे व पत्नी की जान खतरे में है। इस पर भी पुलिस वालों का दिल नही पसीजा। वे पुलिसिया रौब दिखाना शुरू कर दिया. इन दोनों में प्रधान सिपाही सिब्बनल चन्द्रा जिसका बेल्टज नंबर 134 पी.सी.आर. है ने डांटते-फटकारते हुए कहा कि हम क्याब करें तुम्हा रे पत्नील और बच्चेप की जान खतरे में है अगर यह मकान मालिक हमारा सर फोड़ दे तो तब क्याे होगा और जो दूसरा प्रधान सिपाही भगवान सिंह जिसका बेल्ट नंबर 6309 पी.सी.आर. है वो घटना स्थ ल पर आया ही नही वह वहीं तिराहे पर वैन लगाकर वहां की रौनक देखने में व्य स्तव था. अंत में ये दोनों पुलिसिया रौब झाड़ते हुए चले गये. सनद रहे कि इन दोनों पुलिसवालों का नाम और बेल्टआ नंबर आर.टी.आई. के तहत पता चला है. बाद में थाना बिन्दापुर से एएसआई राजेन्द्र सिंह आया। वह पत्रकार राजीव कुमार को न्याय दिलाने के बजाय उन्हीं पर भड़क उठा।

राजीव ने खुद को पत्रकार बताते हुए, एएसआई को सारा मामला समझाते हुए उससे अनुरोध किया कि वह उनकी पत्नी व पुत्र को मकान मालिक सुरेश के बंधक से छुड़ाए। राजेन्द्र सिंह ने पत्रकार राजीव कुमार से काफी बत्तमीजी से उसका परिचय पत्र मांगा। राजीव कुमार द्वारा परिचयपत्र देने के बाद भी राजेन्द्र सिंह ने उससे काफी अभद्रता से बात की और परिचयपत्र को अपने जेब में रख लिया। राजीव ने कई बार परिचयपत्र वापस मांगने के बाद एएसआई ने राजीव को फर्जी पत्रकार के जुर्म में जेल में बंद करने की धमकी देते हुए परिचयपत्र वापस कर दिया। बिन्दापुर थाने का यह बद्जुबान एएसआई लगातार मकान मालिक सुरेश का पक्ष लिये जा रहा था, आखिरकार आस-पास के लोगों ने जब एएसआई पर दबाव बनाया तब जाकर कहीं उसने कुछ मजबूरन करीब 12 घंटे के बाद राजीव की पत्नी और उनके बच्चे को सुरेश के चंगुल से मुक्त कराया। राजीव ने इस पूरे घटना की एफआईआर दर्ज करवानी चाही लेकिन राजेन्द्र सिंह ने कोई भी शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया।

फसाद करने वाले मकान मालिक सुरेश कोई काम-काज नही करता है। उसका बस एक मात्र काम शराब, गांजा पीकर अश्लील हरकत करना, गंदी-गंदी गालियां देना है। झगड़े के समय भी सुरेश के पास गांजे की पुड़िया थी लेकिन एएसआई राजेन्द्र सिंह ने राजीव के कहने पर भी उस ओर कोई ध्यान नही दिया। इसके अलावा मकान मालिक सुरेश अपनी भाभी को जलाकर मारने के आरोप में हरियाणा की जेल में सजा भी काट चुका है। आखिरकार राजीव को उनकी पत्नी और बच्चा सकुशल मिल गया लेकिन घर के कुछ अन्य सामान आज तक नही मिल पाये। सामानों में टीवी, सीलिंग फैन, ट्यूबलाइट व अन्य जरूरी दस्तावेज घर में ही रह गया। राजीव कुमार ने मकान तो बदल लिया किन्तु उनका सामान वापस नही मिला राजीव कुमार ने जब सुरेश से अपना सामान मांगा तो उसने राजीव को धमकी दिया कि यदि उसने अपना सामान वापस मांगा तो वो उसे और उसके परिवार को जान से मरवा देगा। अगर धमकी की शिकायत पुलिस से की तो उसके उपर पचास हजार की चोरी का झूठा आरोप लगवाकर जेल भिजवा देगा। सुरेश की ज्यादती और दिल्ली पुलिस की नाइंसाफी से तंग आकर आखिरकार राजीव ने जनसूचनाधिकार अधिनियम 2005 का उपयोग करते हुए दिल्ली पुलिस से घटना की विस्त्रृत जानकारी मांगी, साथ ही अपनी शिकायत कमिश्नर से कर पुलिस द्वारा उठाए गए कदमों का भी विवरण आरटीआई के तहत मांगा था।

इसके उत्तर में दिल्ली पुलिस कोई सटीक जवाब देने के बजाय गोलमटोल जवाब देकर राजीव को गुमराह करने की पूरी कोशिश की। दिल्ली पुलिस ने सूचना अधिकार के मूल नियमों को ठेंगा दिखाते हुए अधूरा जवाब भेज दिया कि राजीव का कोई भी सामान मकान मालिक के पास नहीं है, उस दिन मकान मालिक से कोई भी झगड़ा नही हुआ था। और मजबूर होकर राजीव ने मामले को केन्द्रीय सूचना आयोग के संज्ञान में लाने हेतु केन्द्रीय सूचना आयुक्त को पत्र भेजा है। उन्हें उम्मीद है कि सूचना आयोग के माध्यम से उन्हें सही जानकारी के साथ न्याय भी मिल सकेगा।